(
फेसबुक लिंक)
"एक रहीन ईर, एक रहीन बीर, एक रहीन फत्ते, एक रहे हम.
ईर कहे चलो लकड़ी काट आएँ, बीर कहे चलो लकड़ी काट आएँ, फत्ते कहे चलो लकड़ी काट आएँ... हम कहा चलो हमऊँ लकड़ी काट आएँ"
पिछले कुछ समय से जिस प्रकार लोग
#ओपन_लेटर- ओपन लेटर खेल रहे हैं.. उसे देखते हुए कवी हरिवंश राय बच्चन जी की इन पंक्तियों इस प्रकार भी बदला जा सकता है -
एक रहीन रवीश, एक रहीन बरखा, एक रहीन राजदीप, एक रहे हम.
रवीश कहें चलो ओपन लेटर लिखा जाए, बरखा कहें चलो ओपन लेटर लिखा जाए, राजदीप कहें चलो ओपन लेटर लिखा जाए... हम कहे चलो
#खुला_पत्र लिखा जाए.
अब समस्या ये थी कि लिखें तो किसे लिखें? तो स्मरण आया कि हजूर #मिलाड से कुछ बातें कहनी थीं... इस कार्य हेतु इससे अच्छा अवसर क्या मिलता. तो
#हजूर_मिलाड...
"के मेरा
#प्रेम_पत्र पढ़कर, के तुम नाराज़ ना होना..."
वैसे, मुझ जैसों को 'कम्युनल' होने का लेबल मिल ही चुका है, तो बिना लोक-लज्जा और पोलिटिकली करेक्ट हुए, पत्र का "श्री गणेश" करते हैं...
माननीय
#मिलाड_जी,
कुछ वर्षों पूर्व से
#दीपावली पर लोगों को पर्यावरण की अत्यधिक चिंता सताने लगी है. वैसे तो हर हिन्दू त्यौहार पर लोगों को पर्यावरण की टांग टूटते दिखती है, परन्तु दिवाली पर इन कुछ लोगों की चिंता विशेषकर वायु प्रदूषण सम्बंधित होती है. इन चिन्ताओं और इन चिंताओं पर गहन मंथन से उपजे परिणाम को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है...
"एक रहे
#लिबरल, एक रहे
#एलिटिस्ट, एक रहे
#पत्रकार, एक रहे मिलाड
लिबरल कहें चलो पटाखे बैन करवाएँ, एलिटिस्ट कहें चलो पटाखे बैन करवाएँ,
#पत्तलकारकहें कहें चलो पटाखे बैन करवाएँ... मिलाड कहे चलो हमऊं पटाखे बैन करवाएँ"
अब हजूर, माईबाप, सरकार... लोग इतने उजड्ड हैं कि आप के
#हुकुम की पटाखों के साथ-साथ धज्जियाँ उड़ा दिये... पूरा धुआँ-धुआँ कर दिए. ना केवल इतना, जनता आप की इस
#आज्ञा को - १. अ-लोकतान्त्रिक २. गैरकानूनी ३. टिरैनिकल ४. अ-वैज्ञानिक ५. एलिटिस्ट कह रही है.
वैसे सच पूछिए तो मैं इन आरोपों में जनता के साथ हूँ. अब आप पूछियेगा कि जब आप ने जनता की भलाई के लिए ये बैन ठोका है, तो ऐसे आरोप कायकू? तो आइये इन आरोपों का विश्लेषण करें.
मिलौड़, आपको सन १८५७ की क्रांति का बिगुल बजाने वाले
#मंगल_पाण्डे जी की कहानी तो स्मरण होगी ही. अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों को गाय और सूअर की चरबी वाले कारतूस प्रयोग करने के लिए विवश करने के प्रयत्न किये. हो सकता है कि ये कारतूस उन सैनिकों के लिए बेहतर होते, परन्तु वे उनका चुनाव नहीं थे - और ये पूरी घटना प्रतीकात्मक-सिम्बोलिक थी. लोगों को अपने भले-बुरे का चुनाव स्वयं करने की स्वतंत्रता चाहिए थी... विशेषकर उन विषयों में, जिनसे उनके जीवन के मूलभूत विश्वास जुड़े थे, आस्था जुड़ी जुड़ी थी.
१.
#अलोकतान्त्रिक भारत के सम्विधान के अनुसार हम "सॉवरेन, सोशलिस्ट, सेक्युलर, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक" अर्थात "स्वायत्त, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणतंत्र हैं" - लोकतंत्र और गणतन्त्र की परिभाषा के अनुसार इस देश का प्रशासन, इस देश की जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि चलाएंगे. यही प्रतिनिधि इस देश के संविधान में आवश्यकतानुसार विधियों/लॉज़ को जोड़,घटा अथवा बदल सकते हैं.
भारत में जजों की नियुक्ति कैसे होती है? कोलेजियम द्वारा - मने, आपस में ही बैठ कर आप सब न्यायाधीश इस बात का निर्णय लेते हैं कि कौन-कौन जज बनेगा. इस विषय पर सविस्तार विडियो बनाऊंगा, परन्तु ये बात तो तय है कि आप की नियुक्ति-प्रक्रिया में जनता के मत का कोई स्थान नहीं है. मैं ये नहीं कह रहा कि इस प्रक्रिया में जनता का हस्तक्षेप होना चाहिए... अपितु मेरा कहना ये है कि लोकतन्त्र अथवा गणतन्त्र की परिभाषा के अनुसार दिवाली पर कोर्ट द्वारा सुनाए गए निर्णय लेने का का अधिकार कोलेजियम द्वारा नियुक्त किये गए लोगों को नहीं है - ये अधिकार जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का है, और उसकी भी एक प्रक्रिया है. यहीं पर जनता का दूसरा आरोप आता है -
२.
#गैरकानूनी ये बात मैं नहीं, सर्वोच्च न्यायलय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, अर्थात सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू जी कह रहे हैं. उनका कहना है कि -
"पटाखे फोड़ने के लिए समय-सीमा तय करने हेतु कोई कानून नहीं है, ना ही केवल ग्रीन-क्रैकर्स फोड़ने की अनुमति देने वाला कोई लॉ है. लॉ बनाने का काम विधान-मण्डल का है, ना कि न्यायपालिका का."
"यदि ऐसा कोई लॉ होता तो जज उसे एनफोर्स कर सकते हैं, परन्तु स्वयं नए कानून नहीं बना सकते. अतएव, दिवाली के पटाखों पर दिया गया ये निर्णय वैधानिक दृष्टिकोण से प्रभावहीन है"... सामान्य भाषा में कहा जाए तो "एकदम लुल्ल निर्णय" था ये.
३.
#टिरैनिकल अर्थात
#अत्याचारी जब आप का निर्णय अपने आप में कोई वैधानिक औचित्य -
#लीगल_इफेक्ट नहीं रखता, तो आप उसे पुलिस द्वारा एनफोर्स भी नहीं करवा सकते. परन्तु विभिन्न राज्यों में लोगों को अरेस्ट तो किया गया. सच पूछा जाए तो अधिकाधिक आप पटाखे फोड़ने पर आप लोगों को न्यायलय की अवमानना -
#कंटेम्प्ट_ऑफ़_कोर्ट के आरोप में अपने यहाँ हाजिरी लगाने नोटिस भेज सकते थे, और कुछ अहिं. तो क्या ये जजों की
#टिरैनी नहीं हुई?
क्या ये ठीक उसी प्रकार नहीं हुआ जैसा अंग्रेजों ने भारतियों के साथ किया था - जबरन गाय और सूअर के कारतूसों को दाँतों से छीलने लगाया था? जो मन में आया, वो करवाया?
४.
#अवैज्ञानिक सर, मेरा मोटापा बढ़ रहा है. मुझे क्या करना चाहिए? जिसे भी इस विषय पर तनिक भी नॉलेज होगा वो आपको बताएगा कि सबसे पहले खाने में शुगर और तलन वाले पदार्थ बंद करिए. साथ में थोड़ा व्यायाम कीजिये. अब जो स्वास्थ्य के प्रति सचमुच गंभीर होगा, वो इन बातों पर तुरंत अमल करेगा. परन्तु जिसे केवल दिखावा करना है, वो वैसे तो सब पिज्जा-बर्गर और अंट-शंट ठूँसेगा, परन्तु सब के सामने चाय में "शुगर-फ्री" लेगा ---- इसे ही कहते हैं "गुड़ खाए, गुलगुले से परहेज!"
तो बात ये है, कि पिछले कुछ वर्षों से लिबरलों, पत्रकारों और एलिटिस्ट लोगों के दिवाली पर प्रदूषण के नाम के
#रुदाली_विलाप के कारण जनता ने इस गंभीर समस्या पर शोध प्रारम्भ की... जिसके फलस्वरूप लोग जान गए कि ये पटाखों का प्रदूषण "चाय की शक्कर" समान ही है. वास्तविक प्रदूषण तो खेतों में पराली जलाने से, कारखानों और वाहनों से हो रहा है. और तो और, खेतों वाला प्रदूषण भी इतनी बड़ी समस्या एक
#कानून के कारण बनी - जिसका अधिकतर जनता को पता ही .नहीं. इसपर भी अलग वीडियो बनाऊंगा. पर बात की बात वही रही कि जब घर की छत टपकने लगे तो आप लोगों को रेनकोट पहनने को कह रहे हो. क्यों? क्योंकि कुछ एलिटिस्ट लोगों ने इसी बात की हवा बनाई हुई है और आप को इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि सच में समस्या का समाधान क्या है!
५. #एलिटिस्ट
अब आते हैं इस पूरे विषय के निचोड़ पर - मिलाड, आप एलिटिस्ट हो!
लीजिये, कह दिया - खुले-आम, छाती ठोक कर! क्या करोगे? जिस प्रकार न्यायलय पर प्रश्न उठाने वाले हमारे पिछले वीडियो को कोर्ट ऑर्डर भेज कर बैन करवाया था, वैसे ये आर्टिकल भी बैन करवाओगे? कल्लो, जो बन पड़े. मैं तो ये भी घोषणा कर रहा हूँ कि आप के पिछले कोर्ट ऑर्डर के विरुद्ध भी विडिओ बनाऊंगा.
अब पुनः विषय पर आता हूँ. जब इस बात का ना कोई
#वैधानिक आधार है, ना ही
#वैज्ञानिक और ना
#तार्किक - तब आप ने पटाखों पर ये निर्णय सुनाया तो सुनाया कैसे? "मेरी मर्ज़ी"?
सर, आप के बंगलों में जो दो-दो टन के एसी लगते हैं ना...उनसे कितना प्रदूषण होता है? आप जिन कारों में खावाखोरी करते हैं, उनसे कितना प्रदूषण होता है?
सबसे अधिक प्रदूषण तो आप और सारी एलीट, साधन-संपन्न, धनवान जनता करती है.
दिवाली किसके लिए सबसे अधिक इम्पोर्टेन्ट है, पता है? माध्यम वर्गीय और उनसे नीचे के हिन्दुओं के लिए. मुट्ठी-भर पटाखे फोड़ कर बच्चों की आँखों में दीपक जल उठते देखना अपने आप में जो सुख है, वो आप क्या जानो! ये सुख वे क्या जानें जिनके पास त्योहारों पर छाती कूटने के छोड़ कुछ नहीं होता!
सर, तुलना करिए कि सबसे अधिक कार्बन फुटप्रिंट किन लोगों का होता है - समाज के आर्थिक रूप से दुर्बल परिवारों का या आप धनाढ्यों का? ये ट्रेन-बसों में धक्के खा-खा कर यात्रा करने वाले... ये गर्मी में पसीना-पसीना होने वाले... ये आज भी घड़े का पानी पीने वाले... इनपर आप धौंस जमा रहे हो?
कौन हैं ये धौंस जमाने वाले... आते कहाँ से हैं?
इन्हें दिवाली पर एकदम से अपने कुत्तों की चिंता होने लगती है. पर जब हम अपनी कटती गौ-माता की रक्षार्थ गुहार लगाते हैं तो हम कम्युनल गुण्डे हो जाते हैं?
आप के
#टौमी हमारी #कामधेनु से अधिक इम्पोर्टेंट हो गए? क्यों? क्योंकि हम सामान्य जनता हैं और आप सब ... सब माने, #एक्टिविस्ट, #एनजीओ, #पत्रकार, #सेलेब्रिटी और #जज... आप सब के सब ऊँचे महलों में रहने वाले?
निकल आया ना सत्य इस मन्थन से -- सामान्य जनता के विरुद्ध आप... आप जो #सामाजिक_न्याय अर्थात #सोशल_जस्टिस की बड़ी बड़ी बाते करते हो. इस #ट्रिकल_डाउन_सिस्टम में आप ऊपर बैठ पानी से अपने स्विमिंग पूल भरते हो, तत्पश्चात हमें होली पर "पानी की बर्बादी" वाला प्रवचन देते हो.
फ़्रांस में जब जनता भूखी थी, तो रानी ने कहा कि यदि तुम्हारे पास खाने के लिए ब्रेड/रोटी नहीं है, तो केक खा लो. उस जनता ने जो किया, उससे कुछ सीख लीजिये, माईबाप.
भवदीय
आशुतोष साहू 'साहूकार'
Ashutosh O. Sahu #SahuCar